उत्तराखंडकविकवि सम्मेलनरवांईशिक्षासफलतासम्मानसंरक्षणसंस्कृतिसामाजिक
Trending

पद्मभूषण दादा बनारसी दास चतुर्वेदी स्मृति- “मुनि ब्रह्म गुलाल नाट्यश्री अलंकरण” से सम्मानित हुए महावीर रवांल्टा।

रवांई क्षेत्र की लोककथा पर आधारित आपका नाटक 'धुएं के बादल' शीघ्र ही पाठकों के सामने आने वाला है।

साहित्य की विभिन्न विधाओं में अपने लेखन के जरिए अपनी विशिष्ट पहचान बना चुके साहित्यकार महावीर रवांल्टा को प्रज्ञा हिन्दी सेवार्थ संस्थान ट्रस्ट-फिरोजाबाद (उ प्र) द्वारा बच्चू बाबा सरस्वती विद्या मंदिर, सीनियर सेकेंडरी स्कूल में आयोजित षष्ठ अंर्तराष्ट्रीय प्रज्ञा सम्मान समारोह में पद्म भूषण दादा बनारसी दास चतुर्वेदी स्मृति-‘मुनि ब्रह्म गुलाल नाट्यश्री अलंकरण’ से सम्मानित किया गया। सुप्रसिद्ध साहित्यकार पद्मश्री डॉ उषा यादव की अध्यक्षता, बुंदेलखंड व सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो सुरेन्द्र दुबे के मुख्य आतिथ्य,भारतीय ज्ञानपीठ के महा प्रबंधक आर एन तिवारी,मारीशस की प्रेरणा आर्यनायक के विशिष्ट आतिथ्य व डा राम सनेही ‘यायावर’ के सान्निध्य में आयोजित समारोह में उन्हें गंठमाला, स्मृति चिन्ह,श्रीफल,अंगवस्त्र,प्रशस्ति पत्र के साथ ही फिरोजाबाद में निर्मित बर्तन व चूड़ियों के साथ ही स्मारिका तथा सम्मान राशि का चेक भेंट किया गया।स्वागत ट्रस्ट के संस्थापक अध्यक्ष अभिषेक मित्तल ‘क्रान्ति’ ने उपस्थित साहित्यकारों का स्वागत किया।आभार मुख्य निदेशक पूरनचन्द गुप्ता, धन्यवाद अध्यक्ष यशपाल ‘यश’ और संयोजन डॉ संध्या द्विवेदी के जिम्मे था जबकि संचालन ट्रस्ट के प्रबंध सचिव कृष्ण कुमार ‘कनक’ द्वारा किया गया।

महावीर रवांल्टा को यह सम्मान उनकी नाट्य कृति ‘एक प्रेमकथा का अंत’ के लिए दिया गया जो रवांई क्षेत्र की सुप्रसिद्ध लोकगाथा ‘गजू-मलारी’ पर आधारित है।

उपन्यास, कहानी, कविता,लोक साहित्य, व्यंग्य, लघुकथा,आलेख,आलेख, समीक्षा, साक्षात्कार जैसी अनेक विधाओं में अपने लेखन के जरिए अपनी खास पहचान बना चुके महावीर रवांल्टा अब तक अनेक नाटक व बाल एकांकी भी लिख चुके हैं इनमें ‘सफेद घोड़े का सवार’,’खुले आकाश का सपना’,’मौरसदार ल लड़ता है’,’तीन पौराणिक नाटक’,’गोलू पढेगा’,’ननकू नहीं रहा’,’पोखू का घमंड’ संग्रह प्रमुख हैं।लेखन के साथ ही अभिनय एवं निर्देशन में अच्छी दखल रखने वाले महावीर रवांल्टा ने अस्सी के दशक से गांव की रामलीला व पौराणिक नाटकों के माध्यम से अभिनय में हिस्सेदारी की बल्कि के पी सक्सेना के प्रहसन ‘लालटेन‌ की वापसी ‘ का रवांल्टी में ‘हिस्यूं छोलकु’ नाम से मंचित भी किया फिर गांव में ही ‘सत्यवादी हरिश्चंद्र’,’अहिल्या उद्धार’,’श्रवण कुमार’ ,’मौत का कारण’,’अधूरा आदमी’,’साजिश’,’जीतू बगड्वाल’ नाटकों के जरिए नाट्य शिविरों की शुरूआत की। उत्तरकाशी में रवांई जौनपुर विकास युवा मंच के माध्यम से तिलाड़ी कांड पर आधारित ‘मुनारबन्दी’ व ‘बालपर्व’, राजकीय पोलीटेक्निक में ‘दो कलाकार’ व ‘समानान्तर रेखाएं’ व बुलन्दशहर में ‘ननकू नहीं रहा’ नाटक निर्देशित करने के साथ ही उत्तरकाशी की प्रसिद्ध ‘कला दर्पण’ नाट्य संस्था की स्थापना में सक्रिय योगदान दिया और ‘काला मुंह’,’बांसुरी बजती रही’,’अंधेर नगरी’,’हैमलेट’,’शूटिंग जारी है’ की प्रस्तुतियों से जुड़े रहे।उतरकाशी के नाट्य इतिहास में वीरेंद्र गुप्ता द्वारा निर्देशित पहले पूर्ण कालिक हास्य नाटक ‘संजोग’ में आपने नायक की यादगार भूमिका निभाई। डॉ सुवर्ण रावत द्वारा निर्देशित ‘बीस सौ बीस’, ‘मुखजात्रा’ व ‘चिपको’ में भी आपका सक्रिय जुड़ाव रहा।

रवांई क्षेत्र की लोककथा पर आधारित आपका नाटक ‘धुएं के बादल’ शीघ्र ही पाठकों के सामने आने वाला है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button