“रवांल्टी साहित्य को नई ऊंचाई: ‘किमडार कू पाणी, पौंटी कू घाम’ पुस्तक लोकार्पित, रवांई संस्कृति को मिली नई पहचान”

Uttarkashi, 4 मई 2025: रवांई क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और भाषा को साहित्य के माध्यम से जीवंत बनाए रखने का एक और सशक्त प्रयास आज उस समय देखने को मिला जब पुरोला विकासखंड के गुण्डीयाटगांव स्थित राजकीय इंटर कॉलेज में लेखक विजयपाल सिंह रावत की आत्मकथा “किमडार कू पाणी, पौंटी कू घाम” का भव्य लोकार्पण समारोह आयोजित किया गया।
यह आयोजन न केवल एक पुस्तक के विमोचन का अवसर था, बल्कि रवांई की बोली, रीति-रिवाज, खान-पान और सभ्यता को दस्तावेज़बद्ध करने वाले एक सांस्कृतिक आंदोलन की निरंतरता का प्रतीक बन गया है। इस कार्यक्रम की विशेष बात यह रही कि इसमें रवांल्टी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर साहित्यकार महावीर रवांल्टा जी का मार्गदर्शन और योगदान प्रमुख रहा, जिनके अथक प्रयासों से रवांल्टी भाषा और संस्कृति को साहित्य के पटल पर एक नई पहचान मिल रही है।
कार्यक्रम में रवांई क्षेत्र से कई साहित्य साधकों एवं कवियों की गरिमामयी उपस्थिति रही, जिनमें शशीमोहन रवांल्टा, अनुज बनाली, प्रदीप रवांल्टा, अनुरूपा अनुश्री, कुलवंती रावत, खिलानंद बिजल्वाण, अनिल बेसारी, तथा राजूली बत्रा प्रमुख रहे। सभी ने मंच से रवांई बोली में अपनी-अपनी प्रस्तुतियों से श्रोताओं को भावविभोर किया।
इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार डॉ. मोहन भुलानी, स्वतंत्र पत्रकार नेत्रपाल यादव, धीरेन्द्र सिंह कंडियाल, प्रताप रावत, प्रहलाद पंवार, जयवीर सिंह रावत एवं भरत सिंह चौहान आदि की भी उपस्थिति रही, जिन्होंने अपने विचार रखते हुए रवांई भाषा के दस्तावेजीकरण को एक ऐतिहासिक कदम बताया।
कार्यक्रम का संचालन और समन्वय बखूबी किया गया और स्थानीय ग्रामीणों से लेकर युवा वर्ग तक, सबमें रवांई संस्कृति के लिए गौरव और अपनापन देखा गया। पुस्तक “किमडार कू पाणी, पौंटी कू घाम” एक ऐसे जनजीवन की झलक देती है जो पहाड़ों के संघर्ष, सादगी और आत्मबल को दर्शाती है।
यह आयोजन निस्संदेह रवांई साहित्य को एक नई ऊर्जा और दिशा देने वाला साबित हुआ है।