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“हर घर जल, हर घर नल” मीशन के बाद भी आग बुझाने को नहींं मिला पानी।

"घर-गांव बस यही कहानी, प्यासा नल खुद मांगे पानी। हर-घर नल, हर-घर जल, पानी की बुंद-बुंद को तरसे नल।।

उत्तरकाशी जनपद के सालरा गांव में हुए अग्निकांड ने विकास की वास्तविकता की पोल खोल के रख दी है। सालरा गांव के लोग आज भी रोड, नेटवर्क, पानी, आदि सुविधाओं से वंचित हैं आज अगर ये सब सुविधाएं होती तो, शायद समय रहते उस गांव के कुछ घरों को बचाया जा सकता था।

लेकिन नेता वादों पर वादे तो करते हैं, जबकी धरातल की स्थिति एक अग्निकांड ने स्पष्ट कर दी है, और शासन-प्रशासन की कार्यशैली पर बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है।

एक ओर नेता और सरकार चिल्ला-चिल्ला के “जल जीवन मीशन”, “मेरा गांव-मेरी सड़क”, “डिजिटल इंडिया” जैसी अनेकों बहुत-सी बड़ी बातें करते हैं, दूसरी तरफ सैकड़ों गावों में यह सब एक बड़ा “घोटाला मीशन” बन रखा है। जिसमें सरकारी विभाग से लेकर नेताओं की भी मिली-भगत लग रही है, जिस वजह से आज तक कोई भी “घोटाला मीशन” में हो रखे भ्रष्टाचारों पर बोलने को तैयार नहीं हैं।

यह सब इसलिए लिखना  पड़ रहा है क्योंकि नेता तो अपने आलीशान महलों में व अपनी महंगी AC गाड़ियों में घुम रहे हैं और ग्रामीणों को अपनी जीवनभर की पूंजी को बचाने के लिए ना पानी की बुंद, किसी को सूचना पहुंचाने के लिए ना नेटवर्क की व्यवस्था और आनन-फानन में कहीं जाने के लिए सड़क तक नहीं मिल पा रही है।

“जल जीवन मिशन” की आधी योजनायें तो फॉरेस्ट क्लियरेंस ना मिलने की वजह से अटकी पड़ी है, तो अनेकों गांवों में पुरानी पेयजल योजनाओं को रिपेयर कर सरकार के “जल जीवन मीशन” के बजट को इतिश्री कर दीया गया।

फिर कुछ लोग जो अपने ही घर, गांवों में “जल जीवन मीशन” में साझेदारी कर खुद को “समाजसेवी” कहते हैं और नेताओं के आगे-पीछे अन्धभक्तों की तरह जीहुजूरी कर पत्रकारिता पर भी प्रश्नचिन्ह लगाते हैं, ऐसे लोगों को शर्म आनी चाहिए। इस प्रकार के लोग हर क्षेत्र में रहते हैं और इन्ही लोगों की वजह से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है, और राजनेताओं को सह मिलती है।

जब सालरा “जल जीवन मीशन ” को लेकर कार्यदायी विभाग “जल संस्थान” के अधिशासी अभियन्ता से उक्त ग्रामसभा की पेयजल योजना की जानकारी ली गयी तो उनके द्वारा बताया गया कि उक्त योजना का श्रोत 25 किलोमीटर दूर है जिसमें 12 किलोमीटर पाइप लाइन बिछ चुकी है  लेकिन उससे आगे फॉरेस्ट द्वारा क्लियरेंस नहीं मिल रहा है।

यह सब रोकना कोई आम बात नहीं है इसके लिए हर गांव नहीं बल्कि हर घर से आवाज उठेगी और समाज के प्रति बेहतर विचारधारा रखने वाले सभी लोग एक हों, (आम आदमी, शिक्षक, कर्मचारी, अधिकारी) तभी कुछ हो सकता है। अन्यथा यह उस कैंसर की भांति है, जो यदि ऐसे ही फैलते गया तो समाज में सच्चे और ईमानदार लोगों का चलना पुरी तरह दुश्वार हो जाएगा और कुछ लोगों की तानाशाही आम-आदमी के आधिकारों को ले डूबेगा।

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