उत्तराखंड देवभूमि की संस्कृति, सभ्यता और परंपराओं का जीवंत प्रतीक रंवाई बसंतोत्सव अपने अंतिम दिन भी संगीत और उल्लास से सराबोर रहा। इस भव्य आयोजन में लोकगायक मीना राणा और सन्नी दयाल की शानदार प्रस्तुतियों ने पूरे वातावरण को संगीतमय कर दिया। जैसे ही गढ़वाली, जौनपुरी, जौनसारी और रंवाल्टी लोकगीतों की धुनें गूंजने लगीं, दर्शकों ने तालियों की गड़गड़ाहट और नृत्य के माध्यम से अपनी खुशी जाहिर की।
मीना राणा और सन्नी दयाल के गीतों पर थिरके श्रोता
रंवाई बसंतोत्सव के अंतिम दिन सन्नी दयाल, मीना राणा और महेंद्र सिंह चोहान ने लोकगीतों और पारंपरिक संगीत की अद्भुत प्रस्तुति देकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। खासकर, बुमली नाची, महासू महाराज की हारूल और जौनसारी हारूल जैसे लोकगीतों की धुनें सुनकर दर्शक खुद को झूमने से रोक नहीं पाए।
सन्नी दयाल के सुपरहिट गीतों “नेड़ा-नेड़ी आइगू हनोली जागीरों” और “घोटा सेमानिये” पर दर्शकों ने जमकर डांस किया। वहीं, मीना राणा के सुमधुर गीतों ने बसंतोत्सव को यादगार बना दिया। इस दौरान गढ़वाली, जौनपुरी और जौनसारी लोकसंगीत की मधुर गूंज से पूरा मेला स्थल झूम उठा।
उत्तराखंड की समृद्ध संस्कृति और सभ्यता का अद्भुत मंच
Purola (पुरोला) में आयोजित रंवाई बसंतोत्सव सिर्फ एक मेला नहीं, बल्कि यह उत्तराखंड देवभूमि की संस्कृति, सभ्यता और लोककला का उत्सव है। यह मेला न केवल मनोरंजन प्रदान करता है, बल्कि पारंपरिक रीति-रिवाजों और सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने का भी महत्वपूर्ण माध्यम बनता है।
मुख्य अतिथि पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष हरिमोहन नेगी ने कहा,
“रंवाई बसंतोत्सव जौनपुर, जौनसार और रंवाई की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संजोने और आगे बढ़ाने का मंच है। इस प्रकार के आयोजन हमारी लोकसंस्कृति को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का कार्य करते हैं।”
सम्मान समारोह: समाज के नायकों को किया गया सम्मानित
रंवाई बसंतोत्सव के दौरान राज्य आंदोलनकारियों, शिक्षा, स्वास्थ्य, पशु चिकित्सा, जल संस्थान एवं अन्य क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वाले अधिकारीयों/कर्मचारीयों को विशेष सम्मान दिया गया। यह सम्मान उन व्यक्तियों को समर्पित था, जिन्होंने अपने कार्य क्षेत्र में अपनी निष्ठा से समाज को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
गणमान्य व्यक्तियों की गरिमामयी उपस्थिति
इस भव्य आयोजन में रवांई, जौनसार, बाबर, जौनपुर के कई प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल हुए, जिनमें प्रमुख थे:
पालिका अध्यक्ष: बिहारी लाल शाह, उप जिला अधिकारी: गोपाल सिंह चौहान, अधिशासी अधिकारी: प्रदीप दयाल
सामाजिक कार्यकर्ता व अन्य अधिकारी/कर्मचारी: ऋतम्बरा सेमवाल, आर.सी.आर्य, मनोज असवाल, विशन राणा, अरुण कुमार पांडे, हरदेव आर्य, पृथ्वी सिंह, जनक सिंह, मोहन कठैत, कविंद्र असवाल, राजपाल रावत, लोकेंद्र रावत, मोहन लाल भूराटा, रेखा जोशी नौटियाल
समाजसेवी एवं युवा नेता: मनमोहन सिंह चौहान (बंगांण)
सभासद गण: मनोज हिमानी, हिमश्वेता असवाल, अंकित चौहान, पूनम नेगी, अनुराधा गुसाईं, रितेश गोदियाल
इन सभी ने उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को संजोने और बढ़ावा देने के प्रयासों की सराहना की।
रंवाई बसंतोत्सव: संगीत, संस्कृति और परंपराओं का महापर्व
यह मेला उत्तराखंड के पारंपरिक संगीत, रीति-रिवाजों और सांस्कृतिक विरासत का उत्सव है। यह आयोजन उत्तराखंड की लोकसंस्कृति, पारंपरिक गीत-संगीत और नृत्य को नए आयाम देने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच साबित हुआ है।
“पहाड़ संदेश” की इस विशेष रिपोर्ट में यह स्पष्ट होता है कि रंवाई बसंतोत्सव सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि अपनी परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने का एक सशक्त माध्यम है।
निष्कर्ष रंवाई बसंतोत्सव का अंतिम दिन संगीत, नृत्य और संस्कृति का एक भव्य संगम बना। उत्तराखंड की परंपराओं, रीति-रिवाजों और संगीत से सजे इस आयोजन ने यह साबित कर दिया कि हमारी लोकसंस्कृति आज भी लोगों के दिलों में जीवंत है। ऐसे आयोजन न केवल हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संजोने का कार्य करते हैं, बल्कि नई पीढ़ी को अपनी परंपराओं से जोड़ने में भी अहम भूमिका निभाते हैं।
आइए, हम सभी मिलकर अपनी संस्कृति को संजोएं और उत्तराखंड की समृद्ध धरोहर को आगे बढ़ाएं!
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