अनदेखीव्यवस्थास्वास्थ्य
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आखिर “उप जिला अस्पताल” पुरोला के नाम पर कौन कर रहा है जनता को गुमराह ? 

सामाजिक कार्यकर्ता लगे उप जिला अस्पताल की व्यवस्था सूचारु करने।

उत्तराखंड के युवा मुख्यमंत्री द्वारा की गयी “सामूदायिक स्वास्थ्य केंद्र” पुरोला का उच्चीकरण कर “उप जिला अस्पताल” की घोषणा के बाद बिना शासनादेश जारी हुये डेढ़ वर्ष पूर्व “उप जिला अस्पताल” का बोर्ड टांग दिया, लेकिन जब क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ताओं को इस बारे में पता चला तो बद्री प्रसाद नौडियाल, जयवीर रावत, प्रकाश कुमार  आदि लोगों ने मुख्यमंत्री धामी को उपजिलाधिकारी के माध्यम से ज्ञापन सौंपा था।

जिसे लेकर पुरोला विधायक दुर्गेश्वर लाल ने कुछ न्यूज़ चैनलों/पोर्टलों के माध्यम से ज्ञापन देने वाले लोगों को विकास कार्यों में बाधा डालने वाला बताया और कहा की “इन लोगों की दलाली की दुकाने बंद हो गयी हैं” और शासन द्वारा जारी उप जिला अस्पताल पुरोला व सामूदायिक स्वास्थ्य केंद्र मोरी के शासनादेश पुरोला विधायक के पास हैं।

लेकिन कुछ माह बीत जाने के बाद पुरोला विधायक व उनके कुछ सहयोगी सोशल मिडिया पर अपनी उपलब्धी बताते हुये सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मोरी के उच्चीकरण के शासनादेश की बधाई शुभकामनाओं के साथ वावाही बटोरते हैं।

जिसके बाद पुरोला उप जिला अस्पताल की घोषणा को लेकर लोग स्वयं को ठगा महसूस करते हैं।

साथ ही जब उत्तराखंड के स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत यमुनोत्री पहुंचे तो उत्तरकाशी भाजपा जिलाध्यक्ष सतेन्द्र राणा द्वारा पुरोला अस्पताल के उच्चीकरण के शासनादेश को लेकर उन्हें लिखित पत्र देकर अवगत करवाया गया।

इतना ही नहीं अस्पताल का बोर्ड तो माननीयों के आदेश पर बहुत जल्द बदल दिए गए, लेकिन वर्षों से खराब पड़ी अस्पताल की पेयजल व अन्य व्यवस्था जस की तस हैं।

अस्पताल में पानी की आपूर्ति करने वाली पाइप लाइन काफी समय से खराब पड़ी थी। जिसके बाद मरीजों की समस्या को देखते हुए सामाजिक कार्यकर्ता प्रकाश कुमार ने अपने संसाधनों से इसे ठीक कराया। साथ ही बदहाल शौचालयों की मरम्मत भी करवाई।

उनके इस प्रयास की अस्पताल प्रशासन ने सराहना कर उन्हें अस्पताल के प्रभारी डॉक्टर मनोज असवाल ने पुष्प-गुच्छ भेंट कर उनका अभिवादन किया।

वहीं, प्रकाश कुमार ने कहा कि प्रदेश सरकार ने पुरोला की जनता को गुमराह किया है। भवन पर उप जिला चिकित्सालय का बोर्ड तो टांग दिया, परंतु सुविधाओं का विस्तार नहीं हुआ है। जिससे मूलभूत सुविधाओं का भी टोटा बना हुआ है।

उपजिला चिकित्सालय के लिए चिकित्सकों के पदों का भी सृजन नहीं किया गया। व्यवस्थाओं को सूचारु करने के लिए अस्पताल प्रशासन के पास भी कोई अतिरिक्त बजट नहीं है।

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