उत्तरकाशी: पुरोला विधानसभा का कुमोला, नौरी, गडोली मोटर मार्ग चढ़ रहा राजनीति की भेंट। जिसमेें वर्तमान में कार्यदाई संस्था/विभाग PMGSY पुरोला द्वारा सम्बन्धित ठेकेदार को कार्य की “Date of start” का लिखित पत्र देकर कार्य शुरु करने की अनुमति दे दी जाती है।
जिसमें सम्बन्धित ठेकेदार अपना कार्य शुरु कर देता है। “लेकिन यह तो पुरोला है ज़नाब” यहाँ एक बड़ी राष्ट्रीय पार्टी के जन-प्रतिनिधियों व दर्जाधारी नेताओं के बीच की गुटबाजी के चलते स्थानीय लोगों का विकास बाधित हो रहा है।
फ़िलहाल हम बात कर रहे हैं कुमोला, नौरी, गडोली रोड के चौड़ीकरण की, जिसमें वन विभाग की 8 मीटर वन भूमि PMGSY को ट्रांसफर हो चुकी है। लेकिन वन विभाग के रेंज अधिकारी अचल कुमार गौतम का कहना है कि, PMGSY ने कार्य शुरु करने से पुर्व हमें कोई सूचना नहीं दी, और ना कोई संयुक्त निरीक्षण किया गया।
गोपनीय सूत्रों की माने तो सम्बन्धित ठेकेदार द्वारा उक्त सड़क के चौड़ीकरण में कोई बड़ी लापरवाही नहीं की गयी, बल्कि पुरोला विधानसभा के एक ही राष्ट्रीय पार्टी के चंद नेताओं की गुटबाजी के चलते वन विभाग द्वारा इतनी बड़ी कार्यवाही की गई।
वन विभाग द्वारा एक एफआईआर पुलिस को दी जाती है, कि उक्त मोटरमार्ग पर उनके द्वारा दो जेसीबी व एक पॉकलेंड मशीन को सीज किया गया था। जिसका की ठेकेदार/मालिक किसी को भी कोई सीजर कार्यवाही सम्बन्धित दस्तावेज वन विभाग द्वारा नहींं दिया जाता है। जबकी सम्बन्धित सड़क के ठेकेदार उस तिथि को सांय 08 बजे तक भी वन विभाग के रेंज अधिकारी के कार्यालय में उपस्थित रहते हैं। लेकिन विभाग द्वारा इन्हे कोई भी सम्बन्धित कार्यवाही के दस्तावेज नहीं दिये गये।
फिलहाल हम बात कर रहे थे वन विभाग द्वारा की गयी एफआईआर की, जिसमें वन विभाग का वन दरोगा लिखता है कि, हम रात 01 बजे अपने सहयोगी के साथ सीज मशीनों से कुछ दुरी पर शौच करने गये थे, तभी उन्हे मशीन स्टार्ट होने की आवाज सुनाई दी और जब तक वनकर्मी उक्त स्थान पर पहुंचते हैं तो वहां मशीनें नहीं होती है।
अब बात यहां तक तो समझ आती है कि जेसीबी मशीनें तो वास्तव में कोई भी तेज रफ़्तार से भगा सकता है, लेकिन पॉकलेंड मशीन की रफ़्तार से तो आप लोग वाकिफ ही होंगे। बात यहाँ समझ से बाहर हो रही है कि जो मशीन कछुए की रफ़्तार से चलती है, आखिर वन विभाग के जांबाजों ने उस मशीन को कैसे नहीं पकड़ पाया।
जब पहाड़ सन्देश की टीम ग्राउंड जीरो पर स्थानीय लोगों से हक़ीक़त जानने पहुंची, तो सूत्रों द्वारा मिली खबर के अनुसार वन विभाग का कोई भी कर्मचारी उक्त रात्रि को वहाँ था ही नहीं।
अब सोचने वाली बात यह है कि वन विभाग के द्वारा पुलिस को दी गयी काल्पनिक सूचना किसके आदेशों पर दी गयी, और किसके कहने पर वन विभाग द्वारा तीन-तीन मशीनों को सीज करने को कहा गया।
वर्ष 2022 में उक्त रेंज अधिकारी को पहाड़ सन्देश की टीम द्वारा थली मोटरमार्ग पर हो रहे दर्जनों अवैध पेड़ों की कटान व अनेकों अनियमितताओं के सम्बन्ध में खबर के माध्यम से सुचित किया गया था तो रेंज अधिकारी अचल कुमार गौतम एक छोटा चालान कर चुप हो जाते हैं।
रेंज अधिकारी अचल कुमार गौतम हमें दिनांक 25 जनवरी को बताते हैं, की यदि सम्बन्धित विभाग हमें कार्य करने से पूर्व एक बार सुचित कर देते तो ये सब नहीं होना था।
इस पूरे घटनाक्रम में सड़क निर्माण कार्य के लिए जिस वन भूमि को वन विभाग वर्षों पूर्व लोक निर्माण विभाग से पुरी औपचारिकताओं के साथ 8 मीटर भूमि पूर्व में दे चुका है, और उक्त सड़क पर कटने वाले पेड़ों के बदले कहीं और वृक्षारोपण के लिए सम्बन्धित विभाग को वर्षों पूर्व धनराशि दे दी गयी थी।
फिर भी आतिथि तक ठेकेदार द्वारा निर्माण कार्य के दौरान एक भी पेड़ को नहीं छेड़ा गया, उसके बाद भी राजनीति के चलते ये सब होना कहीं तो प्रश्न चिन्ह लगाता है।
उक्त सड़क की भारत सरकार द्वारा सैधांतिक स्वीकृति वर्ष 2000 के मार्च माह में दे दी गयी थी।
लेकिन सरकार और प्रशासन को इस पूरे प्रकरण की गहनता से उच्च-स्तरीय जांच के बाद ही किसी नतीजे पर पहुँच कर दोषी के खिलाफ कठोर कार्यवाही करनी चाहिए। यह पुरा प्रकरण कहीं ना कहीं गलत तरीके से राजनीति की भेंट चढ़ा है और वन विभाग द्वारा जल्दबाजी में कार्यवाही की गयी है।